Saturday, 3 December 2011

उम्मीद



ये उम्मीद ही तो है
जो लड़खड़ाने नहीं देती..
आंसू निकल भी आयें ,.
दुनियां को दिखाने नही देती....

दरसल हकीकत है
ये जिन्दगी की
सच्चे साथी बिना
कोरे सपनों मैं रंग लाने नहीं देती
ये उम्मीद ही तो
जो लड़खड़ाने नही देती...

होते हैं जब हैरान-परेशान
जिंदगी की उलझनों से.,
ये उम्मीद ही तो है
जो लड़खड़ाने नही देती....

अलका






1 comment:

  1. bahut achhi hai..ye ummeed...
    jo sabera hone ke intezaar mein hai...
    kabhi raat bojh jab bhaari ho jati..
    ghut ghut kar karwatein se tanha hoti rooh..
    tab ek bheeni se khushboo hai..ummeed

    aapki ye kavita achhi lagi!!
    keep up good work :-)

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