Saturday 25 August 2012

उद्देश्य की तलाश मैं...

अक्सर जिंदगी मुझे दोराहे पर लाकर क्यों खड़ा कर देती है?? या सभी के साथ यही समस्या है??
समझ नही आता है कि किस ओर जाना चाहिए  ...?
चलना नियति है और मुझे भी चलना  होगा। ठहराव भयानक परिणाम लता है।.
मसलन ठहरा हुआ पानी भी सड़ जाता है।.
देहली मैं न अच्छा लग रहा है न बुरा ...अजीब स्थिति होती है ये ..कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं।..

"अपनी धुन मैं उड़ रही थी
 
एक चंचल सी हवा।...

दर्द कोई दे गया पंख ले गया।.

सपना टूटा ..

मौसम रूठा ..

छायीं हैं खामोशियाँ ...

ढूढ़  रहे नैन थके अपना आशियाँ ...

न कोई धरती है  तेरी 

न कोई गगन..

शाख से टूटे पत्ते को जैसे ले चले पवन .. 

तू नदी सी बह  रही सागर कोई नही ..

मोड़ तो कई मिले मंजिल  कोई नही.. 

सपना टूटा ..
 
मौसम रूठा ..
 
छायीं हैं खामोशियाँ ...
 
ढूढ़  रहे नैन थके अपना आशियाँ ...


अलका ..



 

Tuesday 26 June 2012

उद्देश्य की तलाश मैं....

आज फिर से शुरू कर रही हूँ एक नई यात्रा।..आगरा से देहली ...आगरा के बस स्टॉप पर बैठ कर  लिख रही हूँ ...पता नही ये सफ़र अब कैसा रहेगा ??अभी तक के सफ़र मैं कुछ खास नही हुआ।.जिस उद्देश्य की तलाश मुझे थी वो पूरा नही हुआ ..लग रहा है की अब एक बेहतर निर्देशन की जरुरत मुझे है  शायद देहली जाकर पूरा हो सके।.या तो मैंने सपने बड़े देख लिए हैं या फिर मैं उनको पूरा करने का उचित प्रयास नही कर पा रही हूँ।..

हमेशा मेरा सोचना रहा की किस्मत नाम की कोई चीज नही होती हम जो चाहते हैं उसे अपने दम पर पा  सकते हैं पर अब लग रहा है कंही कुछ तो एसा है जो मेरे और मेरे सपने के बीच आ रहा है।..खुद को बदलना मुश्किल होता है पर शहर बदलना आसन और मैं शहर बदल लेती हूँ खुद को नही बदल पाती।पर अब उसी दिशा मैं प्रयास करने जा रही हूँ और इसी जद्दोजहद की कहानी है ये मेरी यात्रा।.....

उद्देश्य की तलाश मैं....

Saturday 23 June 2012

उद्देश्य की तलाश मैं।..

एक बड़े समयान्तराल उपरांत फिर से लिखना शुरू कर रही हूँ।..जिंदगी की जद्दोजहद  मैं उलझ  गयी हूँ।.
हर तरफ निराशा ही निराशा दिख रही है।.समझ नही आ रहा जिंदगी कहाँ  ले जा रही है।और मुझे कहाँ जाना है।.."
 ऐसे मैं उम्मीद की एक किरन  तक देख पाना जैसे कि जीवन ही काटना पड़ जाये किसी  अनजाने नगर मैं।..

 जब हर तरफ अन्धकार दिख रहा हो तो व्यक्ति को किस और जाना चाहिए ? जब कुछ नजर न आये तो किस डगर चल दूँ। कुछ भी समझ नही आ रहा  अब...निरुद्देश्य  भटकी फिरती हूँ बुझती बाती सा जीवन ये।।

उद्देश्य की तलाश मैं।..

Tuesday 24 April 2012

मुक्ति


स्वयं को मुक्त करना कठिन है
परन्तु मुक्त होना जरुरी है
मेरी विवशता है मुक्त होने की..
क्योंकि मेरी मुक्ति के
साथ साथ तुम भी मुक्त हो
इस अनचाहे रिश्ते का
बोझ ढोने से...
जो जुड़ गया था कभी
कुछ भावनाओं मैं बह कर..
तुम भी टूटे थे और जुड़ना चाहते थे..
मैं भी हताश थी जीवन के कड़वेपन से
पर अब परस्थिति भिन्न है..
तुम सक्षम हो अब स्वयं को
जोड़ने मैं..
और मैं भी जीवन के कड़वेपन से
भागना नही चाहती
जैसा ये है, इसे यूँ ही
स्वीकारना चाहती हूँ...

अलका

Saturday 25 February 2012

वक्त

चाहे कैसे भी हो.,
पर ये वक्त गुजर जायेगा...
तेरे मन को कुछ यादें सुहानी ये दे जायेगा..
दूर तक जाने की जो है ये हसरत तेरी.,
वक़्त के साथ ये भी बदलती रहेगी.,.
कभी आरजू होगी आगे जाने की तेरी .,
कभी जुस्तजू होगी लौट आने की तेरी.,
ये डगर है जो जीवन की., बड़ी ही कठिन है 
वक़्त के साथ हर मंजर बदल जायेगा.
कभी रौशनी होगी राहों मैं तेरी.,
तो कभी अँधेरे भी होंगे.,
पर सफर तो सफ़र है .,गुजर जायेगा.
खट्टी - मीठीं यादे तुझको दे जायेगा..
अलका.

एक शहर


दिल के कोने मैं चुपके से
धडकता है कंही..
एक शहर मुझमें भी बसता है कंही...
पिछली रातों के साये मैं
मेरी रूह से लिपटा वो रहा..
मन की गहराईयों मैं.,
छुप के बैठा है कंही ..
अक्स है कोई
जो मिटाने से मिटता ही नही..
आज भी मुझमें वो रहता है कंही...
एक शहर मुझमें भी बसता है कंही..
 
अलका .