Thursday, 29 September 2011

शाम

इतनी धुँधली शाम हो गयी...
अब तुम घर वापस आ जाओ...
फिर से तेरी याद आयी है..
अब तुम घर वापस आ जाओ...

शाम सिरहाने  मेरे बैठी.,
तेरी यादो मैं है खोई ...
तुम्हें पुकारे ये सूनापन .,
अब तुम  घर वापस आ जाओ....

देखो पंक्षी लौट रहे हैं.,
उन पेड़ों की शाखों पर.,
जिन पर नीड़ बसाया था,.,
मन मैं तेरी ज्योति जगी है.,
अब तुम घर वापस आ जाओ....

कल-कल बहती नदी प्रेम की..
छेड़ रही है राग नया एक ..,
तुम्हें पुकारे मेरा आलिंगन .,
अब तुम घर वापस आ जाओ....

अलका पाण्डेय ..

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