Friday, 23 September 2011

कुछ आधे कुछ पूरे सपने ,
मिलते और बिछुड़ते सपने...
जुड़ते और बिखरते सपने..
कितने सुहाने मेरे सपने..
पलकों के सिरहाने आकर बैठ गये हैं.,,
नींद मैं देखे थे जो सपने...
अनदेखे अनजाने सपने..
कितने सुहाने मेरे सपने
जीवन के इस स्वप्निल पथ मैं ..
साथ मेरे वो चल रहे हैं कब से...
कुछ जाने पहचाने सपने..
कितने सुहाने मेरे मेरे सपने..
मेरे सपने.....

No comments:

Post a Comment