Thursday 8 September 2011

मेरे सपने...

कुछ आधे कुछ पूरे सपने..
टूटे और बिखरते सपने..
जुड़ते हैं कभी..
तो कभी टूट भी जाते हैं...
कितने सुहाने मेरे सपने...
पलकों पे सज रहे हैं ..,,
नींद मैं देखे थे जो सपने
मेरे सपने...
अलका ..

1 comment:

  1. please complete this poem....otherwise i've to complete-)

    ReplyDelete