Wednesday, 21 December 2011

प्रियतम मेरे


वो अधिकार कँहा से लाऊं..?
कैसे तुमसे नैन मिलाऊं?
ये अँखियाँ दर्शन को प्यासी..
देखूं कबसे बाट तिहारी..
मन का दर्पण सामने रखकर.,
मेरे अपराध क्षमा कर दो अब..
आ जाओ अब प्रियतम मेरे .,
देखूं कबसे बाट तिहारी..
जोगन के भेष मैं योगिन सी मैं.,
देखूं कबसे बाट तिहारी...
मूरत सी नही, सूरत मेरी..
नैनंन मैं बसी मूरत तेरी..,
मंदिर मैं कँहा ढूँढू तुझको..?
थक थक हारी मै बेचारी..
पंथ पे  दीप जलाये बैठी.
आ जाओ तुम प्रियतम मेरे
देखूं कबसे बाट तिहारी....











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