Thursday, 29 September 2011

शाम

इतनी धुँधली शाम हो गयी...
अब तुम घर वापस आ जाओ...
फिर से तेरी याद आयी है..
अब तुम घर वापस आ जाओ...

शाम सिरहाने  मेरे बैठी.,
तेरी यादो मैं है खोई ...
तुम्हें पुकारे ये सूनापन .,
अब तुम  घर वापस आ जाओ....

देखो पंक्षी लौट रहे हैं.,
उन पेड़ों की शाखों पर.,
जिन पर नीड़ बसाया था,.,
मन मैं तेरी ज्योति जगी है.,
अब तुम घर वापस आ जाओ....

कल-कल बहती नदी प्रेम की..
छेड़ रही है राग नया एक ..,
तुम्हें पुकारे मेरा आलिंगन .,
अब तुम घर वापस आ जाओ....

अलका पाण्डेय ..

शाम

इतनी धुँधली शाम हो गयी...
अब तुम घर वापस आ जाओ...
फिर से तेरी याद आयी है..
अब तुम घर वापस आ जाओ...

शाम सिरहाने  मेरे बैठी.,
तेरी यादो मैं है खोई ...
तुम्हें पुकारे ये सूनापन .,
अब तुम  घर वापस आ जाओ....

देखो पंक्षी लौट रहे हैं.,
उन पेड़ों की शाखों पर.,
जिन पर नीड़ बसाया था,.,
मन मैं तेरी ज्योति जगी है.,
अब तुम घर वापस आ जाओ....

कल-कल बहती नदी प्रेम की..
छेड़ रही है राग नया एक ..,
तुम्हें पुकारे मेरा आलिंगन .,
अब तुम घर वापस आ जाओ....

अलका पाण्डेय ..

Monday, 26 September 2011

इंसानियत


खुद को बाँट डाला है
अनेकों टुकड़ों मैं..
कभी धर्म .,कभी जाति ,.
और कभी राजनीती के नाम पर..,
ये इन्सान है जो इंसानियत को
बेच रहा है.,
कभी धर्म कभी जाति .,
कभी राजनीती के नाम पर.,
दुनियां को बदलने
की बात करता है इंसान
जो खुद के भीतर भी नही झाँकपता.,
समाज मैं फ़ैली बीमारियों को ये
बदल नही पाता.,..
खोखले आदशों की दुहाई
बेबुनियाद धार्मिक ढांचा
पाप और पुण्य का परिकोटा
खींच रहा है ये इंसान.,
कभी धर्म.,कभी जाति और
कभी राजनीती के नाम पर....
 
अलका .

Friday, 23 September 2011

यादों की गली से..

भागता मैं रहा इस शहर से उस शहर ..
पर कोई था ...
जो मुझको बुलाता रहा...
गाँव  मेरा मुझे याद आता रहा...
एक प्यारा सा गाँव..
जिसमें पीपल की छाँव,
पेड़ जामुन के कुछ
खेत सरसों  के  कुछ
मीठा पानी कुँए  का
मुझको बुलाता रहा ...
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा...
धान की बालियाँ...
महकी अमराइयाँ.
माटी की सौंधी महक.,
बीता बचपन मुझे
बुलाता रहा ...
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा..
माँ के आँचल का प्यार
दादी का दुलार...,
वो सावन के झूले,
वो मीठी सी गुझिया
जिसमें कितना था लाड़.,,
वो होली का फाग..,
रंग होली का मुझको बुलाता रहा ..
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा...
गाँव मेरा मुझे बुलाता रहा..
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा...

अलका










कुछ आधे कुछ पूरे सपने ,
मिलते और बिछुड़ते सपने
जुड़ते और बिखरते सपने
कितने सुहाने मेरे सपने
पलकों पर सज रहे हैं,
नींद मैं देखे थे जो सपने
अनदेखे अनजाने सपने
जीवन के पथ मैं
हर पल मेरे साथ चले हैं..
कुछ जाने पहचाने सपने
कितने सुहाने मेरे मेरे सपने..
"मेरे सपने"

कुछ आधे कुछ पूरे सपने ,
मिलते और बिछुड़ते सपने...
जुड़ते और बिखरते सपने..
कितने सुहाने मेरे सपने..
पलकों के सिरहाने आकर बैठ गये हैं.,,
नींद मैं देखे थे जो सपने...
अनदेखे अनजाने सपने..
कितने सुहाने मेरे सपने
जीवन के इस स्वप्निल पथ मैं ..
साथ मेरे वो चल रहे हैं कब से...
कुछ जाने पहचाने सपने..
कितने सुहाने मेरे मेरे सपने..
मेरे सपने.....

Tuesday, 13 September 2011

एक कोशिश

रख हौसला खुद पे...
यकीं एकबार कर ले...
सामने तेरे खुला आकाश है...
जीतने की कोशिश तू बस एकबार कर ले ...

रास्तें की ठोकरें क्या रोक पाएंगी तुझे?
चल उठ! अपनी जीत का आगाज कर दे..
स्वप्न जो आधे-अधूरे थे कभी...
चल जाग जा तू नींद से...
आज अपनी जीत का ऐलान कर दे,...


है कंटीली राह तो क्या?
हार कर रुकना नही है तुझे...
चल उठ!जीत का सेहरा तू अपने नाम कर ले...


अलका 


muasam

कभी पतझड
कभी सावन
कभी मौसम बदल गये...

कभी तुम
कभी हम
कभी रिश्ते बदल गये...

कभी कश्ती
कभी मांझी
कभी समन्दर बदल गये...

 कभी खन्जर
 कभी नश्तर
 कभी दामन बदल गये....


अलका..



Thursday, 8 September 2011

मेरे सपने...

कुछ आधे कुछ पूरे सपने..
टूटे और बिखरते सपने..
जुड़ते हैं कभी..
तो कभी टूट भी जाते हैं...
कितने सुहाने मेरे सपने...
पलकों पे सज रहे हैं ..,,
नींद मैं देखे थे जो सपने
मेरे सपने...
अलका ..