कलकल बहती
अनवरत प्रवाहित होती
आत्मा से मन कि ऒर..
प्रेम गंगा।
आत्मा के उच्च शिखरों पर
हिमखंडों से द्रवित
आँखों के मार्गों से होते हुए
ह्रदय को सींचती हुई
मन के समंदर मैं स्थिर होती
तरंगित होती प्रेम गंगा
मन के अथाह समंदर से
कसौटियों पर कसती
आजमाइशों की धूप खाती
वाष्पित होती शिखरों पर चढ़ती
फिर जमकर हिम होती
प्रेम गंगा।
तुम
एक प्रेम गंगा का पर्याय
आत्मा से मन के सफर में हमसफ़र
मन के मंथन में
कंधे से कंधे लगाये
कभी तूफानों में हाथ में हाथ
दिलाते एक अहसास
अनवरत प्रेम गंगा का।
अनवरत प्रवाहित होती
आत्मा से मन कि ऒर..
प्रेम गंगा।
आत्मा के उच्च शिखरों पर
हिमखंडों से द्रवित
आँखों के मार्गों से होते हुए
ह्रदय को सींचती हुई
मन के समंदर मैं स्थिर होती
तरंगित होती प्रेम गंगा
मन के अथाह समंदर से
कसौटियों पर कसती
आजमाइशों की धूप खाती
वाष्पित होती शिखरों पर चढ़ती
फिर जमकर हिम होती
प्रेम गंगा।
तुम
एक प्रेम गंगा का पर्याय
आत्मा से मन के सफर में हमसफ़र
मन के मंथन में
कंधे से कंधे लगाये
कभी तूफानों में हाथ में हाथ
दिलाते एक अहसास
अनवरत प्रेम गंगा का।
No comments:
Post a Comment