स्त्री क्या नदी हो तुम ?
कभी पहाड़ो की ऊंचाई से गिर कर बहती हो ..
कभी मैदानों मैं शांत भाव से कल कल निनाद करती हो,
कभी बहुत शोर ,तो कभी शांत हो जाती हो ,
कभी सागर मैं जाकर मिलती हो
तो कभी मरुस्थल मैं विलीन हो जाती हो,
स्त्री और नदी मैं समानताएं हैं बहुत ..
जीवनदायनी होती हैं दोनों ..
दोनों ही बहती हैं जीवन की लय मैं
स्त्री क्या नदी हो तुम ?
अलका ..
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