अक्सर जिंदगी मुझे दोराहे पर लाकर क्यों खड़ा कर देती है?? या सभी के साथ यही समस्या है??
समझ नही आता है कि किस ओर जाना चाहिए ...?
चलना नियति है और मुझे भी चलना होगा। ठहराव भयानक परिणाम लता है।.
मसलन ठहरा हुआ पानी भी सड़ जाता है।.
देहली मैं न अच्छा लग रहा है न बुरा ...अजीब स्थिति होती है ये ..कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं।..
"अपनी धुन मैं उड़ रही थी
एक चंचल सी हवा।...
दर्द कोई दे गया पंख ले गया।.
सपना टूटा ..
मौसम रूठा ..
छायीं हैं खामोशियाँ ...
ढूढ़ रहे नैन थके अपना आशियाँ ...
न कोई धरती है तेरी
न कोई गगन..
शाख से टूटे पत्ते को जैसे ले चले पवन ..
तू नदी सी बह रही सागर कोई नही ..
मोड़ तो कई मिले मंजिल कोई नही..
सपना टूटा ..
मौसम रूठा ..
छायीं हैं खामोशियाँ ...
ढूढ़ रहे नैन थके अपना आशियाँ ...
अलका ..
समझ नही आता है कि किस ओर जाना चाहिए ...?
चलना नियति है और मुझे भी चलना होगा। ठहराव भयानक परिणाम लता है।.
मसलन ठहरा हुआ पानी भी सड़ जाता है।.
देहली मैं न अच्छा लग रहा है न बुरा ...अजीब स्थिति होती है ये ..कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं।..
"अपनी धुन मैं उड़ रही थी
एक चंचल सी हवा।...
दर्द कोई दे गया पंख ले गया।.
सपना टूटा ..
मौसम रूठा ..
छायीं हैं खामोशियाँ ...
ढूढ़ रहे नैन थके अपना आशियाँ ...
न कोई धरती है तेरी
न कोई गगन..
शाख से टूटे पत्ते को जैसे ले चले पवन ..
तू नदी सी बह रही सागर कोई नही ..
मोड़ तो कई मिले मंजिल कोई नही..
सपना टूटा ..
मौसम रूठा ..
छायीं हैं खामोशियाँ ...
ढूढ़ रहे नैन थके अपना आशियाँ ...
अलका ..