Saturday 23 June 2012

उद्देश्य की तलाश मैं।..

एक बड़े समयान्तराल उपरांत फिर से लिखना शुरू कर रही हूँ।..जिंदगी की जद्दोजहद  मैं उलझ  गयी हूँ।.
हर तरफ निराशा ही निराशा दिख रही है।.समझ नही आ रहा जिंदगी कहाँ  ले जा रही है।और मुझे कहाँ जाना है।.."
 ऐसे मैं उम्मीद की एक किरन  तक देख पाना जैसे कि जीवन ही काटना पड़ जाये किसी  अनजाने नगर मैं।..

 जब हर तरफ अन्धकार दिख रहा हो तो व्यक्ति को किस और जाना चाहिए ? जब कुछ नजर न आये तो किस डगर चल दूँ। कुछ भी समझ नही आ रहा  अब...निरुद्देश्य  भटकी फिरती हूँ बुझती बाती सा जीवन ये।।

उद्देश्य की तलाश मैं।..

1 comment:

  1. lakshya koi bda nhi hota...koi bhi lakshya paya ja skta he. tum me hr wo chhamta he jo kisi bhi lakshya ko chhota kr skti he. apne lakshya ko thoda samay or dherya do..use pane ke liye chhote chhote aasan lakshya bnao daily unhe pane ki koshish kro.
    Baki sare Mahanagaro ki trh Delhi bhi awsaad se grast logo se bhara pda he.unse door rhna. prayaas gambir to hona chahiye pr udaas nhi...hmesha khush rho.

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